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Saturday, May 6, 2023

" हिचकियाँ "





  

  "हिचकियाँ"

 

     'हिचकियों' से, 

एक बात का तो पता चलता है, 

आज भी हमें 'वो' याद तो करता है! 

बात करे-करे या ना करे,  

हम पर कुछ 'लम्हे'- बरबाद तो करता है!

                                                                                                         ~ Lovlesh शर्मा







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Thursday, November 24, 2011

जनवरी, हम और बारात-ए-लखनऊ......

ओस की टपकती बूँदों में, बहते हुए कोहरे का आगोश, ठिठुरन भरी कंपकपाती वही रोमांटिक सी जानी-पहचानी ठंड, लखनऊ की अनमनी टहलती शाम, बॅकग्राउंड में शहनाईयाँ - शेरवानी शुदा 'बख़्शी' - सेहरे के साये में टिमटिमाती दो आँखें, और उन्ही वाहियात मूँछो के नीचे वो शर्मीली "बख़्शियाना" मुस्कुराहट...जनवरी-लखनऊ-और हम.......अब बस इंतेज़ार है इस शाम का ........... .!!


Thursday, August 20, 2009

क्यूँ आते हो.....................!!

चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो.....................!!

नींद मशगूल हो,
गहराई में कितनी भी.........!
बंद पलकें,
नर्म सांसें,
अल्हड़-मदमस्त,
अंगड़ाई में जितनी भी.......!

दबे पांव,
उंगलियाँ बालों में फिरा जाते हो.....!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो...............................!!

भिड़े दरवाजे....
बंद चटखनी,
सन्नाटे कि चादर,
मखमली कड़ी-बुनी.......!

झींगुरों के,
मद्धम शोर में,
पायल अपनी.....
क्यूँ छनका जाते हो................!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो..........................!!

आते हो.......तो क्यूँ आते हो,
आते हो.......तो ‘फिर’ क्यूँ जाते हो...!
अध-जगा, बैचैन...
द्रवित-कंठ, ‘दग्ध’ दोनों नैन....
सरे-रात अकेला छोड़ जाते हो..........!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो...................................!!

दबे पांव,
उंगलियाँ बालों में फिरा जाते हो.....!
चार बजे आते हो....क्यूँ आते हो...............................!!

Monday, August 17, 2009

चाहत.....

चाहत है फूलों की अगर तुमको आज, जख्म काँटों से खाए हैं ये बात अहम् है I
ठोकरें खाकर गिरना तो बात है आम, उठकर फिरसे चल पडो ये बात अहम् है I

अहसास न बदले......

वक़्त बदले आसमां बदले....बनती, बिगड़ती राहों का कारवां बदले....
रुख बदले, अहसास बदले...भीनी-भीनी सोंधी मिट्टी का वो जायका बदले.....

अक्श बदले, जज्बात बदले....माँ के साये मैं लिपटा..प्यार का वो साया बदले.....
हम बदलें....तुम बदलो....वक़्त का हर पल-छिन बदले...........................

सब बदले.....हे इश्वर.....कुछ कर दिखाने का विश्वास ना बदले..................!!!!
आशाओ के समंदर मैं, मोतियों का झिलमिलकोमलअहसास बदले............!!!!!

सोचा न था......

कुछ ख्वाब, आँखों से निकल कर ,पड़े मिले, नदी के किनारे.....!
ओस कि कुछ बूँदें,फिसल गयीं पत्तों से...........!

लफ़्ज कुछ अटक से गए,गले की ख़राश मैं...........!
बुझते चूल्हे की कुछ 'राख्न',बिखर पड़ी नजदीक ही.......!

झुर्रियों के बीच,टिमटिमाती दो ख़ामोश आँखें.......!
रूमानियत भरी शाम को,लौटते 'परिंदों' की तनहइयां ...........!

जिंदगी के इरादों का,ये मुकाम होगा ...............सोचा था.........!!
दरख्त खुद,जमीं से उखड जायेंगे.........सोचा था.........!!
इस 'अंजुमन' तक आके,'गर्दिशों' को पाएंगे..........सोचा था.........!!

Wednesday, October 3, 2007

व्यथा...

काँटों मैं व्यथित ह्रदय की वेदना, सूखे आंसुओं और दग्ध कंठ की संवेदना,
टूटती सांसों के मध्य जीवन की अभिलाषा,भरसक प्रयासों पर भी वही झूठी दिलासा !

आहट किसी प्रपंच की षड्यंत्र की, पर दोषी पुनः मैं कमी मेरे कर्म की,
अब थक चला हे नाथ मैं इस भार से, ये ठोकरे हर बार की इस हर से !

कुछ अंश हिम्मत का मुझे दे जा प्रभु, हर ले मेरे सब दोष अवगुण हे प्रभु,
घनघोर संकट मैं हूँ ठिठका खडा, संसार की नजरों मैं हूँ दुर्बल बड़ा !

आजाओ पकड़लो डूबते का हाथ तुम, देदो जरा सा आज मेरा साथ तुम,
माना कि मैंने ना ही तेरा तप किया, संकट मैं ही केवल तेरा सुमिरन किया,
पर आज भी जो सके नाथ तुम, बुझ जायेगा "लवलेश" का जलता दिया !