"हिचकियाँ"
'हिचकियों' से,
एक बात का तो पता चलता है,आज भी हमें 'वो' याद तो करता है!बात करे-करे या ना करे,हम पर कुछ 'लम्हे'- बरबाद तो करता है!
~ Lovlesh शर्मा
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चलायमान, चंचल मन कि कल्पना अक्सर बेबस कर जाती रही, मैं भी उसे नज़रअंदाज ना कर पाया, मेरी छोटी ऊँगली मैं अपनी ऊँगली पिरोए वो और मैं गीली रेत पर नदी के किनारे चल पड़े...अचानक मैंने मुडके देखा तो....तो शब्दों के ये पदचिन्ह अपने रूप पर इठ्ला रहे थे........
"हिचकियाँ"
'हिचकियों' से,
एक बात का तो पता चलता है,आज भी हमें 'वो' याद तो करता है!बात करे-करे या ना करे,हम पर कुछ 'लम्हे'- बरबाद तो करता है!
~ Lovlesh शर्मा
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