चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो.....................!!
नींद मशगूल हो,
गहराई में कितनी भी.........!
बंद पलकें,
नर्म सांसें,
अल्हड़-मदमस्त,
अंगड़ाई में जितनी भी.......!
दबे पांव,
उंगलियाँ बालों में फिरा जाते हो.....!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो...............................!!
भिड़े दरवाजे....
बंद चटखनी,
सन्नाटे कि चादर,
मखमली कड़ी-बुनी.......!
झींगुरों के,
मद्धम शोर में,
पायल अपनी.....
क्यूँ छनका जाते हो................!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो..........................!!
आते हो.......तो क्यूँ आते हो,
आते हो.......तो ‘फिर’ क्यूँ जाते हो...!
अध-जगा, बैचैन...
द्रवित-कंठ, ‘दग्ध’ दोनों नैन....
सरे-रात अकेला छोड़ जाते हो..........!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो...................................!!
दबे पांव,
उंगलियाँ बालों में फिरा जाते हो.....!
चार बजे आते हो....क्यूँ आते हो...............................!!
क्यूँ आते हो.....................!!
नींद मशगूल हो,
गहराई में कितनी भी.........!
बंद पलकें,
नर्म सांसें,
अल्हड़-मदमस्त,
अंगड़ाई में जितनी भी.......!
दबे पांव,
उंगलियाँ बालों में फिरा जाते हो.....!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो...............................!!
भिड़े दरवाजे....
बंद चटखनी,
सन्नाटे कि चादर,
मखमली कड़ी-बुनी.......!
झींगुरों के,
मद्धम शोर में,
पायल अपनी.....
क्यूँ छनका जाते हो................!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो..........................!!
आते हो.......तो क्यूँ आते हो,
आते हो.......तो ‘फिर’ क्यूँ जाते हो...!
अध-जगा, बैचैन...
द्रवित-कंठ, ‘दग्ध’ दोनों नैन....
सरे-रात अकेला छोड़ जाते हो..........!
चार बजे आते हो....
क्यूँ आते हो...................................!!
दबे पांव,
उंगलियाँ बालों में फिरा जाते हो.....!
चार बजे आते हो....क्यूँ आते हो...............................!!