ओस की टपकती बूँदों में, बहते हुए कोहरे का आगोश, ठिठुरन भरी कंपकपाती वही रोमांटिक सी जानी-पहचानी ठंड, लखनऊ की अनमनी टहलती शाम, बॅकग्राउंड में शहनाईयाँ - शेरवानी शुदा 'बख़्शी' - सेहरे के साये में टिमटिमाती दो आँखें, और उन्ही वाहियात मूँछो के नीचे वो शर्मीली "बख़्शियाना" मुस्कुराहट...जनवरी-लखनऊ-और हम.......अब बस इंतेज़ार है इस शाम का ........... .!!
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